राजपुरोहितो की पहचान ‘‘जय श्री रघुनाथ जी’’
जब दो राजपुरोहित मिलते हैं, तो एक-दूसरे का अभिवादन ‘‘ जय श्री रघुनाथ जी’’ कहकर करते है। इससे मन में यह प्रतिक्रिया जाग्रत होती है कि जय श्री रघुनाथ जी ही क्यों कहा जाता है। अतः हमें इसके बारे में कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
स्वर्णयुग में सूर्यवंश में एक महान् प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट महाराज रघु हुए थे । महाराज रघु वैष्णव धर्म के अनुयायी तथा भगवान विष्णु के परम भक्त थे । महाराज रघु की कीर्ति तीनों लोकों में व्याप्त थी । महाराज रघु के नाम पर इनके कुल का नाम रघुकुल भी पड़ा । इस कुल में स्वयं भगवान रामचन्द्र जी ने अवतार लिया । महाराज रघु द्वारा भगवान विष्णु की घोर अराधना के आधार पर भगवान श्री हरी विष्णु का एक नाम रघु के नाथ (रघुनाथ) भी पड़ा । जब हम रघुनाथ का नाम संबोधन में प्रयुक्त करते हैं तो हम उसी प्राण पुरूषोतम ब्रह्मपरमात्मा सृष्टि के पालनकर्ता श्री विष्णु की जयघोषण करते है।
वैसे सम्बोधन किसी भी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु प्रचलन का एक अलग ही महत्व होता है। इसी कारण आपसे कोई राजपुरोहित बन्धु ‘‘जय श्री रघुनाथ जी की’’ कहे तो आप तुरन्त समझ जायेगे कि वह व्यक्ति राजपुरोहित है। यही इसी सम्बोधन में निहित सार है।
जब दो राजपुरोहित मिलते हैं, तो एक-दूसरे का अभिवादन ‘‘ जय श्री रघुनाथ जी’’ कहकर करते है। इससे मन में यह प्रतिक्रिया जाग्रत होती है कि जय श्री रघुनाथ जी ही क्यों कहा जाता है। अतः हमें इसके बारे में कुछ जानकारी अवश्य होनी चाहिए।
स्वर्णयुग में सूर्यवंश में एक महान् प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट महाराज रघु हुए थे । महाराज रघु वैष्णव धर्म के अनुयायी तथा भगवान विष्णु के परम भक्त थे । महाराज रघु की कीर्ति तीनों लोकों में व्याप्त थी । महाराज रघु के नाम पर इनके कुल का नाम रघुकुल भी पड़ा । इस कुल में स्वयं भगवान रामचन्द्र जी ने अवतार लिया । महाराज रघु द्वारा भगवान विष्णु की घोर अराधना के आधार पर भगवान श्री हरी विष्णु का एक नाम रघु के नाथ (रघुनाथ) भी पड़ा । जब हम रघुनाथ का नाम संबोधन में प्रयुक्त करते हैं तो हम उसी प्राण पुरूषोतम ब्रह्मपरमात्मा सृष्टि के पालनकर्ता श्री विष्णु की जयघोषण करते है।
वैसे सम्बोधन किसी भी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु प्रचलन का एक अलग ही महत्व होता है। इसी कारण आपसे कोई राजपुरोहित बन्धु ‘‘जय श्री रघुनाथ जी की’’ कहे तो आप तुरन्त समझ जायेगे कि वह व्यक्ति राजपुरोहित है। यही इसी सम्बोधन में निहित सार है।