अपने लिये तो कुछ न किया, औरो के लिये कर गये ।

सन्त श्री खेताराम जी महाराज

अपने लिये तो कुछ न किया, औरो के लिये कर गये ।
पुष्कर जैसा तीर्थ धोरो मे, आसोत्रा धाम कर गये ।।
बिखरे पडे थे समाज के मोती, उन्हे इकट्ठा कर गये ।
एक धागे माला के मणके, जाति एकता कर गये ।।
चन्दा उगाया राजपुरोहित जाति, हर द्वार, हर घर गये ।
केवल राजपुरोहितो के पईसे से, मंदिर निर्माण कर गये ।।
होनी तो होकर रहती, अनहोनी दाता कर गये
श्राप ब्रह्मा मंदिर न होगा, प्राण प्रतिष़्ठा कर गये ।।
माया के चक्कर मे पडकर, कई भोपत मर गये ।
त्याग तपस्या कर खेतेश़्वर, अमर नाम कर गये ।।
परहित कारण राजपुरोहित कुल मे, ब्रह्म साक्षात् कर गये ।
अपने कर्म कर्तव्य कारण, तुलछारामजी शिष्य कर गये ।।
पुरोहित तत्व तन मे धारो, दिशा देकर दाता गये ।
समाज अनुसरण कीया जिनका, खेतेश़्वर बाते कह कर गये ।।
।।श्री खेतेश़्वर दाता की जय।।
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