खेतेश्वर दाता ने समाज को एकता व भाईचारे का संदेश देते हुए आगे कहा कि-
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बोले खेतेश्वर बोल सभी को वचन सुनाया ,
अमर लोक से आज म्हारे परवाना आया ,
तुलसाराम ने राखजो म्हारे गादी पाट ,
अमर लोक मेँ देवता जोवे म्हारी बाट ।।
बापजी री महिमा गाऊँ
सुनो सकल धर ध्यान दाता ने हरदम ध्याऊँ ।
सतयुग रा उपदेश आज कलयुग मेँ सुनाऊँ ।
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बारह ने छत्तीस सुरज शिखर पर आयो रे ,
आप करियो प्रयाण
हंसलो स्वर्ग सिधायो रे ,
दाता खेताराम जी रे
मुकुन्द घोङे असवार ,
स्वर्गपुरी मेँ देवता रे
कर रिया जय जयकार ,
दाता री कर रिया जय जयकार ।।
बापजी री महिमा . . . . ।
सतयुग रा उपदेश . . . . ।
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भरतखंड रे माँय वासना च्वनिश फूटी रे ,
जीत्यो जग संग्राम बापजी
लंका लूटी रे ,
शेँष भाण प्रकाश भयो
मिली ज्योत से ज्योत ,
स्वर्गपुरी मेँ देवता -2
कर रिया तनक दंडोत ।।
बापजी री महिमा . . . . . ।
सतयुग रा उपदेश . . . . . ।
अर्थात- दाता ने उपस्थित लाखोँ की जनमेदनी को उपदेश देने के बाद कहा अब मेरे लिये समय समाप्त हुआ अब मेरे लिये बुलाया आ गया है , मेरी गादी पर तुलसाराम जी को रखना ।
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तीन युग लगभग 4000000 वर्ष मेँ कितने ही महात्मा हुए लेकिन कोई ब्रह्माजी की पूजा नहीँ करा सका लेकिन चौथे युग के भरतखंड मेँ दाता ने ब्रह्माजी की पूजाकर के घर घर मेँ ब्रह्माजी की ध्वजा फहरा दी ।
ऐसे महापुरुष के दर्शन के लिये स्वर्ग मेँ देवताओँ की कतारेँ लगी थी और सभी दाता को दंडोत किये जा रहे थे ।
एक बात और कहूँ सुणजो चिन्त लगाय ,
अंत धाम री ओपमा वरणी कोनी जाय ,
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ब्रह्मधाम ने देख इन्द्र भी मन मेँ शरमावे ,
काँई कैवुँ समझाय देवो मुख वरणी न जावे ,
ब्रह्मधाम री शोभा वरणी कोनी जाय ,
चार खूँट और चौदह भवन मेँ
और न दूजी नायँ ।
बापजी री महिमा . . . . ।
सतयुग रा उपदेश . . . . ।
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जो कथा गाय सुणावे
वास बैकुंठा पावे ,
काल नैङो नी आवे
सीधा सरगाँ जावे ,
सुणे सुणावे प्रेम सुँ
सभी पाप झङ जाय ,
जो ध्यावे ध्यान सुँ
जन्म मरण मिट जाय ।।
बापजी री महिमा . . . . . ।
सतयुग रा उपदेश . . . . . ।
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अर्थात - दाता ऐसी ब्रह्मधाम बनाकर गये जिस देखकर इन्द्रदेव भी शरमा जाये कि इस धाम के आगे इन्द्रपूरी फीकी लगती है ,।