स्व.श्री हरी सिंह राजपुरोहित



स्‍व.श्री हरि सिंह राजपुरोहित , जिन्‍होने वन्‍यजीव हिरणों के प्राणों की रक्षार्थ सहर्ष अपने प्राणों का बलिदान दे दिया । धन्‍य है इनके माता - पिता और धन्‍य है मरूधरा जिन्‍होने इस महान बलिदानी को जन्‍म देकर '' अंहिसा परमोधर्म '' और प्राणी मात्र की रक्षा जैसे संस्‍कारों से आत्‍मसात किया ।

राजस्‍थान की धरती वीर वसुन्‍धरा कही जाती है । इसके कण - कण में त्‍याग , बलिदान , शौर्य , ममता , करूणा , मसनव सेवा की अनगिनत गाथाऐं आज भी बडी श्रद्धाभाव और मुक्‍तकण्‍ठ से याद की जाती है । यहां के वीर और वीरांगनाओं के स्‍मरण मात्र से ही मानव धन्‍य हो जाता है । इतिहास इस बात का गवाह है कि राजपुरोहित समाज में ऐसे अनेक महान कर्मयोगी वीर हुए है जिन्‍होने मात्रभुमि और धर्म की रक्षार्थ , नारी सम्‍मान , गौरक्षा और जीवों के प्राण बाने हेतु अपने प्राणों का बलिदान किया । नि:संदेह इसी पंरपरा का पालन करते हुए श्री हरि सिंह राजपुरोहित ने वन्‍य जीव हिरणों के प्राणो की रक्षार्थ अपने प्राणो का बलिदान कर अपने परिवार , गांव , समाज एवं देश का गौरव बढाया । इस इतिहास पुरूष का जन्‍म राजस्‍थान के जैसलमेर जिला अन्‍तर्गत पोकरण तहसील के झाबरा गांव में 1 सितम्‍बर , 1976 को हुआ । इनके पिता श्री राधाकिशन सिंह गांव में खेती का कार्य करते है । इनकी माता का नाम श्रीमती जतन कंवर है । आल्‍यावस्‍था से ही गौ सेवा एवं वन्‍य जीवों के प्रति स्‍नेह भाव इनके जीवन का ध्‍येय था । परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्‍य ही थी । इन्‍होने 8 वीं तक पढाई करने के बाद अपने पिता के कार्यो में हाथ बटाना शुरू कर दिया । परिवारिक खेती बाडी के साथ गौ सेवा , पर्यावरण संरक्षण तथा वन्‍य जीवों की सेवा इनके दिनचर्या के महत्‍वपूर्ण कार्य थे । रेगिस्‍थान इलाका जहां पानी की नितान्‍त कमी रहती है वहां अपने टेक्‍टर द्वारा पानी के टेंकर लाकर गायों और वन्‍य जीवों की प्‍यास बुझाना धर्म और कर्म था । कुछ वर्ष पूर्व कानोडिया पुराहितान निवासी प्रभु सिंह सेवड की सुपुत्री नेनू कंवर के साथ इनकी शादी हो गई । दोनो ही परिवारों में खुशियों की बगीया महक उठीं । शादी के बाद भी श्री हरि सिंह की दिनचर्या और व्‍यवहार में काई अन्‍तर नही आया । गौ सेवा वन्‍य जीवों के प्रति दया भाव, पर्यावरण संरक्षक ( खेजडी , बैर , नीम के पेड लगाकर उनका पोषण करना ) से इनका जुडाव और बढ गया । छोटे से व्‍यवसाय चाय की दुकान द्वारा परिवारिक कर्तव्‍य निभाने के साथ - साथ जब भी समय मिलता तब गांव के युवाओं को अक्‍सर प्रेरणा देते थे कि गौ सेवा और वन्‍य जीवों की रक्षा करना हमारा कर्तव्‍य है । श्री हरि सिंह के 4 संताने जिनमें 2 पुत्र एवं 2 पुत्रियां है । 28 अप्रेल 2004 प्रति दिन की भांति इस दिन भी सांय 7 बजे के करीब श्री हरि सिंह राजपुरोहित अपने टेक्‍टर से पानी का टेंकर लाने हेतु घर से निकले । गांव के बाहर ( कांकड में ) इनको अचानक गोली चलने की आवाज सुनाई पडी तो इन्‍हे इस बात का एहसासा हो गया कि कोई शिकारी है जो वन्‍यजीवों का शिकार कर रहा है । श्री हरि सिंह ने उसका पिछा किया तो देखा कि कुछ लोग हिरणों का शिकार करने के लिए सशस्‍त्र खडे थे । वो लोग उसी क्षैत्र के भील जाति के थे जिनमें प्रमुख शिकारी ओमा राम भील था । हरि सिंह ने इनको पहचान लिया और शिकार करने से मना किया । हरि सिंह ने कहा इन निरपराध अमुक जीवों की हत्‍या मत करो, मगर शिकायत ने उनकी सुनी अनसुनी कर हरि सिंह को कहा कि तुम यंहा से चले जाओ वरना हिरण से पहले तुम्‍हे गोली मार देंगे । अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह ने हिम्‍मत नही हारी , वह उनको ललकार कर कहने लगा - '' हां मेरी जान भले ही ले लो पर इन हिरणों का शिकार मत करो '' । काफी प्रयास करने के बाद भी जब हरि सिंह को लगा कि शिकारी रूकने वाले नहीं है तो दौडकर अपने चार - पांच साथियों को लेकर आया और शिकारिंयों को ललकारा । हरि सिंह साथियों सहित वापस आने तक शिकारियों ने एक हिरण को गोली मार दी थी । हरि सिंह इस अमानवीय क़त्‍य को देखकर स्‍वयं को रोक नहीं सका उसने ओमा राम भील से कहा कि वह स्‍वयं को पुलिस के हवाले कर दे मगर शिकारी ने अपनी बंदूक हरि सिंह राजपुरोहित के सीने पर तानकर कहा कि तुम लोग यहां से चुपचाप चले जाओ वरना इस हिरण की तरह तुम्‍हे भी गोली मार देंगे । निडर और अदंभ्‍य साहस के धनी हरि सिंह राजपुरोहित अपने प्राणों की परवाह किये बिना शिकारियों से भीड गया । इसी समय ओमा राम भील ने हरि सिंह राजपुरोहित को गोली मार दी । गोली लगने के बाद भी खून से लथपथ हरि सिंह ने शिकारी से बंदूक और म्रत हिरण को छीन लिया । बंदूक की गोली से घायल हुए हरी सिंह राजपुरोहित को पोकरण अस्‍पताल ले जाया गया । जब तक वे अस्‍पताल पंहुचे तब तक बहुत सारा खून बह चूका था । और अन्‍तत: ... यह महान कर्मयोगी वीर एवं वन्‍य जीव प्रेमी नश्‍वर संसार को छोडकर चला गया । हालांकि शिकारी एक हिरण का शिकार कर चूका था मगर स्‍व. श्री हरि सिंह राजपुरोहित की आत्‍मा इस बात से प्रसन्‍न थी की आज न जाने कितने हिरणों के प्राण बच गए । हे अमर वीर । तुम्‍हारा यह बलिदान विश्‍व वन्‍दनीय है आज समाज ही नहीं बल्कि सम्‍पूर्ण मानव जाति और प्रत्‍येक प्राणी मुम्‍हारी इस शहादत को नमन करते



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