गौ माता की महिमा और शक्ति


गौ माता की अद्भुत महिमा

महामहिमामयी गौ हमारी माता है उनकी बड़ी ही महिमा है वह सभी प्रकार से पूज्य है गौमाता की रक्षा और सेवा से बढकर कोई दूसरा महान पुण्य नहीं है|

१. गौमाता को कभी भूलकर भी भैस बकरी आदि पशुओ की भाति साधारण नहीं समझना चाहिये गौ के शरीर में “३३ करोड़ देवी देवताओ” का वास होता है. गौमाता श्री कृष्ण की परमराध्या है, वे भाव सागर से पार लगाने वाली है|

२. गौ को अपने घर में रखकर तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिये, ऐसा कहा गया है जो तन-मन-धन से गौ की सेवा करता है. तो गौ उसकी सारी मनोकामनाएँ पूरी करती है. |

३. प्रातः काल उठते ही श्री भगवत्स्मरण करने के पश्चात यदि सबसे पहले गौमाता के दर्शन करने को मिल जाये तो इसे अपना सौभाग्य मानना चाहिये |

४. यदि रास्ते में गौ आती हुई दिखे, तो उसे अपने दाहिने से जाने देना चाहिये |

५. जो गौ माता को मारता है, और सताता है, या किसी भी प्रकार का कष्ट देता है, उसकी २१ पीढियाँ नर्क में जाती है |

६. गौ के सामने कभी पैर करके बैठना या सोना नहीं चाहिये, न ही उनके ऊपर कभी थूकना चाहिये, जो ऐसा करता है वो महान पाप का भागी बनता है |

७. गौ माता को घर पर रखकर कभी भूखी प्यासी नहीं रखना चाहिये न ही गर्मी में धूप में बाँधना चाहिये ठण्ड में सर्दी में नहीं बाँधना चाहिये जो गाय को भूखी प्यासी रखता है उसका कभी श्रेय नहीं होता |

८. नित्य प्रति भोजन बनाते समय सबसे पहले गाय के लिए रोटी बनानी चाहिये गौग्रास निकालना चाहिये.गौ ग्रास का बड़ा महत्व है |

९. गौओ के लिए चरणी बनानी चाहिये, और नित्य प्रति पवित्र ताजा ठंडा जल भरना चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य की “२१ पीढियाँ” तर जाती है |

१०. गाय उसी ब्राह्मण को दान देना चाहिये, जो वास्तव में गाय को पाले, और गाय की रक्षा सेवा करे, यवनों को और कसाई को न बेचे. अनाधिकारी को गाय दान देने से घोर पाप लगता है |

११. गाय को कभी भी भूलकर अपनी जूठन नहीं खिलानी चाहिये, गाय साक्षात् जगदम्बा है. उन्हें जूठन खिलाकर कौन सुखी रह सकता है |

१२. नित्य प्रति गाय के परम पवित्र गोवर से रसोई लीपना और पूजा के स्थान को भी, गोमाता के गोबर से लीपकर शुद्ध करना चाहिये |

१३. गाय के दूध, घी, दही, गोवर, और गौमूत्र, इन पाँचो को ‘पञ्चगव्य’ के द्वारा मनुष्यों के पाप दूर होते है |

१४. गौ के “गोबर में लक्ष्मी जी” और “गौ मूत्र में गंगा जी” का वास होता है इसके अतिरिक्त दैनिक जीवन में उपयोग करने से पापों का नाश होता है, और गौमूत्र से रोगाणु नष्ट होते है |

१५. जिस देश में गौमाता के रक्त का एक भी बिंदु गिरता है, उस देश में किये गए योग, यज्ञ, जप, तप, भजन, पूजन , दान आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है |

१६ . नित्य प्रति गौ की पूजा आरती परिक्रमा करना चाहिये. यदि नित्य न हो सके तो “गोपाष्टमी” के दिन श्रद्धा से पूजा करनी चाहिये |

१७. गाय यदि किसी गड्डे में गिर गई है या दलदल में फस गई है, तो सब कुछ छोडकर सबसे पहले गौमाता को बचाना चाहिये गौ रक्षा में यदि प्राण भी देना पड़ जाये तो सहर्ष दे देने से गौलोक धाम की प्राप्ति होती है |

१८ . गाय के बछड़े को बैलो को हलो में जोतकर उन्हें बुरी तरह से मारते है, काँटी चुभाते है, गाड़ी में जोतकर बोझा लादते है, उन्हें घोर नर्क की प्राप्ति होती है |

१९. जो जल पीती और घास खाती, गाय को हटाता है वो पाप के भागी बनते है |

२०. यदि तीर्थ यात्रा की इच्छा हो, पर शरीर में बल या पास में पैसा न हो, तो गौ माता के दर्शन, गौ की पूजा, और परिक्रमा करने से, सारे तीर्थो का फल मिल जाता है, गाय सर्वतीर्थमयी है, गौ की सेवा से घर बैठे ही ३३ करोड़ देवी देवताओ की सेवा हो जाती है |

२१ . जो लोग गौ रक्षा के नाम पर या गौ शालाओ के नाम पर पैसा इकट्टा करते है, और उन पैसो से गौ रक्षा न करके स्वयं ही खा जाते है, उनसे बढकर पापी और दूसरा कौन होगा. गौमाता के निमित्त में आये हुए पैसो में से एक पाई भी कभी भूलकर अपने काम में नहीं लगानी चाहिये, जो ऐसा करता है उसे “नर्क का कीड़ा” बनना पडता है |

गौ माता की सेवा ही करने में ही सभी प्रकार के श्रेय और कल्याण है |

गाय क्यों कहलाती है गौ माता?
गाय के दैवी और आध्यात्मिक स्वरूप को अलग और विभिन्न रूपों में निरूपित किया जा सकता है। उक्त उदाहरण सिर्फ गाय के मानवीय महत्व को व्यक्त करते हैं। वेद शास्त्रों और कला साहित्य संस्कृति के विभिन्न रूपों में गाय के प्रति अहोभाव व्यक्त हुआ है। यों प्रकृति का कण-कण हमें देता है।

इसीलिए कण-कण में देवाताओं का निवास माना है। लेकिन इस प्राकृतिक संरचना में गाय को हमने विशेष दर्जा दिया है। उसे कामधेनु, गौ माता माना है। वह हमें दूध, दही, घी, गोबर-गोमूत्र के रूप में पंचगव्य प्रदान करती है। इन पंचतत्वो का पोषण और इनका शोधन गोवंश से प्राप्त पंच गव्यों से होता है।

गाय से सीखा मनुष्य ने मां कहना
गाय स्वभाव, संस्कार और उपस्थिति से मनुष्य के सर्वाधिक निकट है। जो सरलता, अनाक्रमकता, आत्मीयता उसके स्वभाव में देखने को मिलती है, वह मनुष्य में भी दुर्लभ है। मां का दूध न मिलने पर किसी भी मनुष्य के शिशु का पोषण पहले दिन से गाय के दूध पर किया जा सकता है। शुरु दिन से मनुष्य ने गाय को मां कह कर पुकारा तो वह अकारण नहीं है।

यह अनूठा तथ्य है कि मनुष्य ने अपनी जननी और माता को मां कहना गाय के बछड़े से ही सीखा। गाय का बछड़ा अपनी मां को देख कर जिस तरह पुकारता है, वह ध्वनि मां या म्हा जैसी सुनाई देती है। संसार की अधिकांश भाषाओं मे बच्चा (और बड़ा होने पर भी) अपनी मां को मां, म्हा, मातृ, मदर, मादर, मम्मी आदि संबोधनों से ही पुकारता है।

यह गाय के बछड़े द्वारा किए गए स्वर संबोधन के आसपास ही है। मां और शिशु के स्नेह संबंध को जो संज्ञा दी गई है, वह गाय और बछडे़ के संबंध को व्यक्त करती है। इस शब्द में स्नेह, संरक्षण और पोषण के कई तत्व निहित है।

गाय के गोबर में लक्ष्मी
गाय प्रकृति की माता है। वह गोबर से धरती को उर्वरा बनाती है। जल और वायु का शोधन करती है।अग्नि व ऊर्जा प्रदान करती है। गोबर,� गाय का वर है। गोबर में धन की देवी लक्ष्मी का निवास बताया गया है।

इसी प्राकृतिक देन से भारत सोने की चिड़िया बना। आज हमारी जीवन शैली बदल गई है। इससे हमारी आर्थिक स्थिति पर असर पड़ा। हमारी ग्रामीण सभ्यता धीरे-धीरे शहरीकरण के प्रभाव में आती गई तो ग्राम आधारित खेती, गो धन पर भी उसका असर हुआ।

अगर प्राकृतिक वैदिक वैद्य परंपरा पर शोध किया जाए तो स्वस्थ दुनिया की कल्पना कोई बड़ी बात नहीं है। ऐसा कोई रोग नहीं जिसमें पंचगव्य से चिकित्सा नहीं की जा सकती।

गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधा हैं। इनमें मैं गौमाता को सर्वोपरि महत्व है। पूजनीय गौमाता
हमारी
ऐसी माँ है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।
गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुँच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है।
भविष्य पुराण में लिखा है गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं।
भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं- 'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।'
जिस प्रकार माता-पिता, भाई बंधु, मित्र गण होते हैं उसी प्रकार गोमाता भी हमारी परम हितैषी होती है। जो हमें स्नेहपूर्वक अमृतमय दूध और औषधियाँ प्रदान करती हैं।


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