आज हमारे लिये बन्धुओं,दिवस शुभ आया है।
वेदान्ताचार्य का तप,सबके दिल पर छाया है।।
बड़ी-बावड़ी की धरा पर,जनमानस आया है।
सीता-माता की गोद से,रत्न अनमोल पाया है।।
धन्य तात बाबूसिंहजी,पुरखों की कमाई है।
आज आपके आंगन में,पुरोहित जाति समाई है।।
धन्य यह आंगन है,जहां गुरुवर खेले थे।
इसी आंगन परिवार संग,होते नित मेले थे।।
इसी आंगन सीता-मैया,खाना खिलाया करती थी।
इसी आंगन पूत संग,सुख-दुख की आहें भरती थी।।
इसी आंगन भाईयों के संग,रोज तमाशे होते थे।
राखी के बन्धन का,भार यहीं पर ढोते थे।।
बचपन की यादों का, यहीं आंगन दर्पण था।
वात्सल्य-ममत्व का नित,दिखता यहां समर्पण था।।
आज उसी आंगन से गुरुवर,लेने विदाई आये है।
सबके होकर भी कुटुम्ब से,हुए आज पराये है।।
दे दे मात भिक्षा में,वात्सल्य-रस की धारा भी।
करना होगा निज-कुटुम्ब से,आज मुझे किनारा भी।।
अबसे आपका नही है,इस काया अधिकार।
तुलसारामजी के चरणों मे,जीवन-पथ स्वीकार।।
पूत आपका विदा लेता,सुनो कुटुम्ब-परिवार।
आज से इस काया पर,ब्रह्म-समाज का अधिकार।।
माता तेरे यश को मैं,पूरे जग फैलाऊंगा।
तात आपके आदर्शों से,सफल-गुरु कहलाऊंगा।।
बाट जो रहीं कर-जोड़,ब्रह्म-समाज की बेटियां।
समय-साथ बदलाव चाहती,ये आज की बेटियां।।
आशीष दे दो इस आंगन से,माता अन्तिम बार।
मिटा दूंगा समाज से,कुरीति-व्याभिचार।।
गुरुवर के चरणों में,प्रणाम बारम्बार है।
आप पर कुर्बान सारा परिवार है।।
जय ब्रह्माजी की
जय गुरुमहाराज जी की