स्वरूपों भटियानी जी का जन्म ग्राम
जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर
के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ |
स्वरूपों का विवाह
मालाणी की राजधानी जसोल के राव
भारमल
केपुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव
कल्याणसिंह के साथ हुआ था| उसके संतान
नहीं होने पर राव कल्याण ने दूसरा विवाह
किया |विवाह के ऐक साल बाद
रानी भटियानी ने ऐक बालक को जन्म
दिया जिसका नाम लालसिंह रखा गया |
प्रथम राणी देवड़ी के रूठे होने पर
राणी स्वरुप ने उसे विस्वाश दिलाते हुए
कहा की अपनी माँ भवानी की पूजा अर्चना व्
व्रत करे व् आस्था ,सरधा व्विस्वाश बढ़ाएं
माँ अवश्य भक्त की आवाज सुनेगी |
देवड़ी राणी ने स्वरूपं की बातों में विश्वास
कर वेसा हि किया जेसे कहा गया और
राणी देवड़ी भक्ति में लग गयी और कुछ
समय पश्चात देवड़ी राणी ने भी ऐक बालक
को जन्म दिया |जिसका नाम प्रताप सिंह
रखा गया |कहा जाता हे की कुछ समय
पश्चात ऐक दासी ने
देवड़ी राणी को भड़काया की छोटी राणी स्वरूपों का पुत्र
प्रताप सिंह से बड़े होने पर व् कल्याण सिंह
का उतराधिकारी बनेगा और छोटे पुत्र
प्रताप सिंह को उनके हुकुम का पालन
करना पड़ेगा दासी उसे बार बार गुप्त
मंत्रणा कर उसके पुत्र को राजपाट ड़ालने
के लिए बहकाने लगी |इससे अत्यधिक कहने
पर देवड़ी राणी को भविष्य की चिंता सताने
लगी और वह अपने पुत्र
को उतरा धिकारी बनाने के लिए हर वक्त
चिंतित रहने लगी | भद्र पक्ष
की कृष्णा पक्ष की काजली तीज के दिन
राणी स्वरुप ने राणी देवड़ी को झुला झूलने
के लिए बाग़ में चलने
को कहा तो राणी देवड़ी ने सर दर्द
का बहाना बनाकर कह दिया की में नहीं चल
सकती तब राणी स्वरुप ने आपने पुत्र लाल
सिंह को राणी देवड़ी के पास छोड़कर
झुला झूलने चली गयी | राणी देवड़ी ने इस
अवसर को देखते हुए उसने विस्वास पत्र
दासी ( मंथरा ) को बुलाया और लाल सिंह के
लिए जहर मिला दूध लेकर इंतजार करने
लगी | थोड़ी देर बाद जब वह खेलते -खेलते
दूध के लिए रोने लगा तब दासी ( मन्थरा ) ने
जहर मिला दूध लाल सिंह को पिला दिया |
उससे उसी समय लाल सिंह के प्राण निकल
गए | कुछ समय बाद जब राणी स्वरुप
झुला झुलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के
न जागने पर जब उसने बालक को जगाने के
लिए सर के नीचे हाथ डाला तो हाथ में
काला खून लगा देख राणी स्वरूपा ने
भी प्राण त्याग दिए यह बात राव कल्याण
सिंह को पता चला तो तो उन्हें इस बात पर
विश्वास नहीं हुआ और वे तत्काल रानीवास
गए और वहां के हालत देखकर राव कल्याण
सिंह बेसुध हो गए |राजा को राणी व् कुंवर
खोने का बहुत दुःख हुआ जैसे तैसे
अग्निसंस्कार किया और पत्रवाहक
को स्वरूपों के मायके जोगीदास के गाँव के
लिए तत्काल रवाना किया | इधर जोगीदास
के गाँव में से २ धमामी (मंगनियार ) जसोल
आ पहुंचे |राव कल्याण सिंह के महल
की स्थति को देखकर
दोनों दमामियो को अचरज हुआ |
घटना की जानकारी मिलने के बाद वह सीधे
शमसान घाट पहुंचे और शोक विहल होकर
कागे के गीतों की झड़ी लगाते हुए
राणी स्वरूपों को पधारने लगे | बार - बार
पुकारने पर राणी स्वरूपों ने उनको दर्शन
दिए लेकिन उनको देवी के रूप में देखकर
विश्वास नहीं हुआ |फिर भी दमामी ने
अपनी फरियाद सुनाई इस पर
राणी को दमामी की भक्ति पर बड़ा गर्व
हुआ | उन्होंने दमामी को इनाम के तोर पर
सोने की पायल व् कंगन दीये
तथा कहा की जोगीदास के गाँव में मेरे
माता पिता को कहाँ की में हमेसा आपके
साथ
हूँ |इतना कहकर वह अद्रश्य हो गयी |
दमामी ने स्वरूपों द्वारा दिया इनाम राव
कल्याण सिंह को दिखाकर घटना सुनाई पर
राव कल्याण सिंह को इस बात पर विश्वास
नहीं हुआ तब राव चोथे दिन गाँव वालों के
साथ शमसान पहुंचे
तथा वहां हरा भरा खेजड़ी का पेड़ देखकर
नदी किनारे पर मंदिर निर्माण
करवाया जिसके चमत्कार प्रभाव से आज
जन मानस इस सरधा स्थल पर प्रतिवर्ष
उमड़ आता हे |इस मंदिर परिसर में
राणी भटियानी के साथ हि सवाई सिंह
जी को भी सरधा के साथ सर
नवाया जाता हे ।। करन जय माजिसा री।।
| सवाई सिंह जसोल मालवी राव प्रताप सिंह
के द्वितीय पुत्र थे इन दिनों इस क्षेत्र में
संघ केलुटेरों के आक्रमण व् गाय बेलों को ले
जाकर बेचने काटने के धरम विरुद्ध कार्य से
जनता परेशान थी | राव प्रताप सिंह ने
व्रध्हा अवस्था में होने के कारन यह कार्य
प्रथम पुत्र वखतसिंह को सोंपा तब छोटे
पुत्र सवाई सिंह ने अपने भाई को दुश्मनों से
युद्ध करने से माना करके लुटेरों को समाप्त
करने का वचन लेकर कुल
देवी की तपस्या पश्चात् यह वर पाकर
की युध्ह में जाने के बाद पीछे मुड़कर मत
देखना में तुम्हारा सहयोग करुँगी | इस
देवी का वरदान पाकर सवाई सिंह ने
दुश्मनों का संहार किया | मगर पीछे घात
लगाकर दुश्मनों के आक्रमण से पीछे देखने
देखने पर देवी वरदान अनुसार सवाई सिंह
का धड़ अलग हो गया | फिर भी वीर गोभक्त
ने दुश्मनों का संहार करते हुए उनका सर
निशान में उठाकर जब जसोल में प्रवेश
किया व् पिताजी के दर्शन कर
धरती माँ की गोद में समां गए | इस तरह यह
वीर सवाई सिंह भोमिया के रूप में पूजे जाने
लगे | इनका भव्य मंदिर जसोल में हे और
जन्म स्थान जोगीदास में भी हे और तो हर
घर में हे माँ के पर्चे जसोल और जोगीदास के
गाँव स्थित जन -जन की आराध्य
देवी माता राणी भटियानी की ख्याति आज
राजस्थान से
गुजरती हुयी पडोसी राज्यों गुजरात ,
मध्यप्रदेश , हरियाणा , महाराष्ट्र , और
सिंध प्रदेश तक जा पहुंचा हे |
जहाँ प्रतिवर्ष १५ लाख से अधिक स्राधालू
भक्तजन माता के दरबार में शीश नवाकर
अपने सुखद सफल शोभ्ग्य
की मनोतियां माँगते हे | इस मंदिर में
त्रयोदसी व्
चतुर्दसी को राणी भटियानी का भव्य
मेला भरा जाता हे | प्रतिवर्ष साल में २ बार
भद्र पद व् माघ में मेला भरा जाता हे |
जोगीदास के गाँव जन्म में
भी माता राणी भटियानी का भव्य uमंदिर
बना हे जहा साल में २ बार यात्री आते हे |
जय माता दी...
~ॐ~
जय श्री माजीसा माँ
जोगीदास तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर
के ठाकुर जोगीदास के घर हुआ |
स्वरूपों का विवाह
मालाणी की राजधानी जसोल के राव
भारमल
केपुत्र जेतमाल के उतराधिकारी राव
कल्याणसिंह के साथ हुआ था| उसके संतान
नहीं होने पर राव कल्याण ने दूसरा विवाह
किया |विवाह के ऐक साल बाद
रानी भटियानी ने ऐक बालक को जन्म
दिया जिसका नाम लालसिंह रखा गया |
प्रथम राणी देवड़ी के रूठे होने पर
राणी स्वरुप ने उसे विस्वाश दिलाते हुए
कहा की अपनी माँ भवानी की पूजा अर्चना व्
व्रत करे व् आस्था ,सरधा व्विस्वाश बढ़ाएं
माँ अवश्य भक्त की आवाज सुनेगी |
देवड़ी राणी ने स्वरूपं की बातों में विश्वास
कर वेसा हि किया जेसे कहा गया और
राणी देवड़ी भक्ति में लग गयी और कुछ
समय पश्चात देवड़ी राणी ने भी ऐक बालक
को जन्म दिया |जिसका नाम प्रताप सिंह
रखा गया |कहा जाता हे की कुछ समय
पश्चात ऐक दासी ने
देवड़ी राणी को भड़काया की छोटी राणी स्वरूपों का पुत्र
प्रताप सिंह से बड़े होने पर व् कल्याण सिंह
का उतराधिकारी बनेगा और छोटे पुत्र
प्रताप सिंह को उनके हुकुम का पालन
करना पड़ेगा दासी उसे बार बार गुप्त
मंत्रणा कर उसके पुत्र को राजपाट ड़ालने
के लिए बहकाने लगी |इससे अत्यधिक कहने
पर देवड़ी राणी को भविष्य की चिंता सताने
लगी और वह अपने पुत्र
को उतरा धिकारी बनाने के लिए हर वक्त
चिंतित रहने लगी | भद्र पक्ष
की कृष्णा पक्ष की काजली तीज के दिन
राणी स्वरुप ने राणी देवड़ी को झुला झूलने
के लिए बाग़ में चलने
को कहा तो राणी देवड़ी ने सर दर्द
का बहाना बनाकर कह दिया की में नहीं चल
सकती तब राणी स्वरुप ने आपने पुत्र लाल
सिंह को राणी देवड़ी के पास छोड़कर
झुला झूलने चली गयी | राणी देवड़ी ने इस
अवसर को देखते हुए उसने विस्वास पत्र
दासी ( मंथरा ) को बुलाया और लाल सिंह के
लिए जहर मिला दूध लेकर इंतजार करने
लगी | थोड़ी देर बाद जब वह खेलते -खेलते
दूध के लिए रोने लगा तब दासी ( मन्थरा ) ने
जहर मिला दूध लाल सिंह को पिला दिया |
उससे उसी समय लाल सिंह के प्राण निकल
गए | कुछ समय बाद जब राणी स्वरुप
झुला झुलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के
न जागने पर जब उसने बालक को जगाने के
लिए सर के नीचे हाथ डाला तो हाथ में
काला खून लगा देख राणी स्वरूपा ने
भी प्राण त्याग दिए यह बात राव कल्याण
सिंह को पता चला तो तो उन्हें इस बात पर
विश्वास नहीं हुआ और वे तत्काल रानीवास
गए और वहां के हालत देखकर राव कल्याण
सिंह बेसुध हो गए |राजा को राणी व् कुंवर
खोने का बहुत दुःख हुआ जैसे तैसे
अग्निसंस्कार किया और पत्रवाहक
को स्वरूपों के मायके जोगीदास के गाँव के
लिए तत्काल रवाना किया | इधर जोगीदास
के गाँव में से २ धमामी (मंगनियार ) जसोल
आ पहुंचे |राव कल्याण सिंह के महल
की स्थति को देखकर
दोनों दमामियो को अचरज हुआ |
घटना की जानकारी मिलने के बाद वह सीधे
शमसान घाट पहुंचे और शोक विहल होकर
कागे के गीतों की झड़ी लगाते हुए
राणी स्वरूपों को पधारने लगे | बार - बार
पुकारने पर राणी स्वरूपों ने उनको दर्शन
दिए लेकिन उनको देवी के रूप में देखकर
विश्वास नहीं हुआ |फिर भी दमामी ने
अपनी फरियाद सुनाई इस पर
राणी को दमामी की भक्ति पर बड़ा गर्व
हुआ | उन्होंने दमामी को इनाम के तोर पर
सोने की पायल व् कंगन दीये
तथा कहा की जोगीदास के गाँव में मेरे
माता पिता को कहाँ की में हमेसा आपके
साथ
हूँ |इतना कहकर वह अद्रश्य हो गयी |
दमामी ने स्वरूपों द्वारा दिया इनाम राव
कल्याण सिंह को दिखाकर घटना सुनाई पर
राव कल्याण सिंह को इस बात पर विश्वास
नहीं हुआ तब राव चोथे दिन गाँव वालों के
साथ शमसान पहुंचे
तथा वहां हरा भरा खेजड़ी का पेड़ देखकर
नदी किनारे पर मंदिर निर्माण
करवाया जिसके चमत्कार प्रभाव से आज
जन मानस इस सरधा स्थल पर प्रतिवर्ष
उमड़ आता हे |इस मंदिर परिसर में
राणी भटियानी के साथ हि सवाई सिंह
जी को भी सरधा के साथ सर
नवाया जाता हे ।। करन जय माजिसा री।।
| सवाई सिंह जसोल मालवी राव प्रताप सिंह
के द्वितीय पुत्र थे इन दिनों इस क्षेत्र में
संघ केलुटेरों के आक्रमण व् गाय बेलों को ले
जाकर बेचने काटने के धरम विरुद्ध कार्य से
जनता परेशान थी | राव प्रताप सिंह ने
व्रध्हा अवस्था में होने के कारन यह कार्य
प्रथम पुत्र वखतसिंह को सोंपा तब छोटे
पुत्र सवाई सिंह ने अपने भाई को दुश्मनों से
युद्ध करने से माना करके लुटेरों को समाप्त
करने का वचन लेकर कुल
देवी की तपस्या पश्चात् यह वर पाकर
की युध्ह में जाने के बाद पीछे मुड़कर मत
देखना में तुम्हारा सहयोग करुँगी | इस
देवी का वरदान पाकर सवाई सिंह ने
दुश्मनों का संहार किया | मगर पीछे घात
लगाकर दुश्मनों के आक्रमण से पीछे देखने
देखने पर देवी वरदान अनुसार सवाई सिंह
का धड़ अलग हो गया | फिर भी वीर गोभक्त
ने दुश्मनों का संहार करते हुए उनका सर
निशान में उठाकर जब जसोल में प्रवेश
किया व् पिताजी के दर्शन कर
धरती माँ की गोद में समां गए | इस तरह यह
वीर सवाई सिंह भोमिया के रूप में पूजे जाने
लगे | इनका भव्य मंदिर जसोल में हे और
जन्म स्थान जोगीदास में भी हे और तो हर
घर में हे माँ के पर्चे जसोल और जोगीदास के
गाँव स्थित जन -जन की आराध्य
देवी माता राणी भटियानी की ख्याति आज
राजस्थान से
गुजरती हुयी पडोसी राज्यों गुजरात ,
मध्यप्रदेश , हरियाणा , महाराष्ट्र , और
सिंध प्रदेश तक जा पहुंचा हे |
जहाँ प्रतिवर्ष १५ लाख से अधिक स्राधालू
भक्तजन माता के दरबार में शीश नवाकर
अपने सुखद सफल शोभ्ग्य
की मनोतियां माँगते हे | इस मंदिर में
त्रयोदसी व्
चतुर्दसी को राणी भटियानी का भव्य
मेला भरा जाता हे | प्रतिवर्ष साल में २ बार
भद्र पद व् माघ में मेला भरा जाता हे |
जोगीदास के गाँव जन्म में
भी माता राणी भटियानी का भव्य uमंदिर
बना हे जहा साल में २ बार यात्री आते हे |
जय माता दी...
~ॐ~
जय श्री माजीसा माँ