राजपुरोहित रूपावास गांव के वीरो की गाथा

राजपुरोहित राजसिंह जी रुपावास भाग प्रथम
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पारिवारिक परिचय :-  राजसिंह जी के दादा जी बिजाजी दामावत घेवड़ा गाँव के  जागीरदार थे  , राजसिंह जी के पिता जी चोथ सिंह जी पांचवा गाँव के जागीरदार थे , आपके एक 
भाई नृसिंह जी थे 

दिल्ली दौरा :- आपके कुटुंबी भाई मूलराज जी के पौत्र कल्याण सिंह जी द्वारा आपके नाम का प्रस्ताव रखा गया था 
जिसके बाद राव मालदेव जी ने आपको दिल्ली शेरशाह सूरी
के साथ समझौता करने के लिए दल बल के साथ भेजा था
आप ने शेरशाह सूरी और मालदेव के बीच सफल समझौता कराया था, राज सिंह जी ने दिल्ली में  सूरी के साथ कई दिन बिताए , राज सिंह जी बहुत ही खूबसूरत ,विद्वान ,शांतिप्रिय, अच्छे जाने माने वकील
धार्मिक प्रवृति , वफादार, थे इसी कारण शेरशाह सूरी ने कहा कि खुदा ने आपको बहुत खूबसूरत बनाया है तो किस्मत भी 
बहुत अच्छी  होगी तो सूरी ने राजसिंह जी से कहा कि मै आपकी किस्मत आजमाना चाहता हूं कि ऊपर वाले ने आपकी किस्मत में किया लिखा है ओर चार गोणी  में अलग अलग धातु भारी गई और राजसिंह जी को कहा कि आप अपनी तलवार जिस गोणी पर रखोगे वह आपकी होगी इसमें से एक सोने की है आपको एक पर ही तलवार रखनी है तो राजसिंह जी ने अपने ईष्ट देव चारभुजा नाथ को याद करके एक पर तलवार रखी तो उसमें सोना निकला
सूरी खुश हुआ और कहा कि मुझे विश्वास था कि ऊपर वाले ने आपकी किस्मत में यही लिखा होगा ओर सोना राजसिंह को दिया गया और सुरी ने राजसिंह जी को पूछा कि आपके पास जागीर कितनी है तो उन्होंने बताया कि 4-5 गाँव है तो सुरी नाराज हो गया मालदेव पर कहा इतने बड़े बुद्धिजीवी आदमी के पास तो बहुत जागीर होनी चाहिए काम इतने बड़े बड़े कराते हैं और बदले में जागीर इनके कद के हिसाब से नहीं है आप इनको कम से कम 84 गाँव  देवो यह मेरा आदेश है तब मालदेव जी ने कहा कि पुरोहित जी को इतने सारे गाँव देना संभव नहीं है मै इनको कुछ गांव ओर से दूंगा तब सुरी ने कहा नहीं आप इनको 84 गाँव देवो जब तक राजसिंह जिंदा है तब तक गांव उनके बाद में आपके वापस  हो जाएंगे और मालदेव जी ने आदेश का पालन किया , राजसिंह जी को शेर शाह सूरी ने 500 बल सोना ओर एक निंबोरा दिया और निंबोरा ए हक़ भी दिया मतबल यह एक नगाड़ा होता था जिसको राजा महाराजा अपने राज्य  या कहीं बाहर जाते समय बजाते थे जिसे आसानी से पहचाना जाता था कि यह उनका नगाड़ा है लेकिन नगाड़ा ए हक़ पूरे भारत में बजा सकते थे जो राजसिंह जी को भी दिया गया था यह बजाने से 
सबको मालूम पड़ जाता की कोन आ रहे हैं ओर सुरी ने राजसिंह जी को आदेश भी दिया था कि आपका काफिला जिस नगर में रुकेगा वहा आपको लूटपाट करनी है यह हमारा रिवाज है आप हमारे सहयोगी मित्र है इसलिए इस रस्म को अदा करना जरूरी होता है 
राजसिंह जी दिल्ली से मारवाड़ की ओर रवाना हुए तब उन्होंने सोने की बोरी को तलवार से काट काट कर के सोने की मोहरे सड़क पर बिखेर दी और दिल्ली की गरीब जनता 
वो सोने की मोहरे लेने वालों की भीड़ उनके पीछे पीछे चल रही थी यह खबर जब शेर शाह सूरी को मिली तो वह गुस्सा हो गया और राजसिंह जी को वापस बुलाया की आप यह क्या कर रहे हों मैने तो सोना आपको दिया और आप सड़कों पर उछाल रहे हो यह हमारी तौहीन है , आपने ऐसा क्यों किया तब राजसिंह जी ने कहा कि मेरी किस्मत मै
तो सब कुछ लिखा है कोई चीज की कमी नहीं है तो में यह सोने की गोनी साथ ले जाने की बजाय गरीबों में बांटने का फैसला लिया इनके चेहरों पर खुशी देखना चाहता था कि कभी इनकी किस्मत भी खुल जाए मेरी वजह से तो मुझे अच्छा लगा और इस सोने पर मेरा अधिकार था मुझे इसको किस जगह पर काम लेना था यह भी मेरा अधिकार था तब सुरी
मान गया कि चलो गरीबो का भला हुआ आप कितने दानी पुरुष हो यह भी मुझे आज पता चल गया  अब आप ज़ावो
राजसिंह जी दिल्ली से आते समय रात्रि विश्राम टोंक में अपना पड़ाव डाला रात में सब निंद्रा में थे तब आकाशवाणी हुई कि हे वीर प्रोहित तुम मेरी इस नगरी को मत लूटना यहां के लोग मुसलमानों से बहुत दुखी है ओर प्रोहित किसी दीन दुखियों को नहीं लूटता यह प्रोहितो का कार्य नहीं है आपका कार्य परायो का हित करना है , अहित मत करना यह आवाज सिर्फ राजसिंह जी को ही सुनाई दे रही थी तब राजसिंह जी ने पूछा हे प्रभु आप कोन हो मै आपका आदेश 
मानता हूं तब आकाश वाणी हुई मै तुम्हारा इष्ट देव हूं तब राजसिंह जी ने कहा मेरे इष्ठ देव तो चारभुजा नाथ है तो उन्होंने कहा हां मैं वहीं हूं मेरा यहां मंदिर है तुम्हारे पड़ाव से उत्तर दिशा में एक पुराना मंदिर है मेरी पूजा पाठ कोई नहीं
करता मै अब यहां नहीं रहना चाहता हे प्रोहित तुम मुझे अपने साथ  ले चलो यह सुनकर राजसिंह जी प्रातः उस मंदिर में जाते है तो मंदिर मुस्लिमो द्वारा तोड़ा हुआ ओर जीर्ण शीर्ण अवस्था में होता है वे उस मूर्ति के दर्शन करने के बाद उसे उठाने लगते है पर मूर्ति हिलती भी नहीं तब वो मूर्ति खुद बोल पड़ती हैं कि हे वीर प्रोहित आप कल पीत वस्त्र पहन कर आना ओर हाथ आगे करना मै स्वयं तुम्हारे हाथों में आ  जाऊंगा तब राजसिंह अगले दिन वैसा ही करते हुए हाथ आगे करते है तो मूर्ति उनके हाथो में आ जाती है इतनी भारी मूर्ति 
उनको फूलों से भी हल्की लगती हैं राजसिंह उस मूर्ति को अपने साथ हाथी पर सवार होकर अपने हाथो में थाम कर 
मारवाड़ में रूपावास गाँव में एक छतरी बनाकर उसमें रख देते हैं कुछ समय के लिए, राजसिंह जी जोधपुर मालदेव जी को सारा घटना क्रम बताते हैं ओर उनको वापस राजा बनाते हैं तब राजसिंह जी को कुछ गाँव देते है ओर वे 84गाँव अलग से देते हैं लेकिन उन गांवों के बारे में पता नहीं चला कि वे कहा थे ओर कितने साल राजसिंह जी के पास थे राजसिंह जी ने चारभुजा के मंदिर का शुभ मुहूर्त  पंडितो से निकलवाया ओर गाँव  रूपावास 
में भव्य मंदिर बनाया ओर चारभुजा नाथ की मुंहबोली मूर्ति की स्थापना की  , राजसिंह जी ने इस मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा
में बहुत धन राशि खर्च की , प्रतिदिन अब रूपावास में चमत्कारिक मूर्ति की पूजा पाठ नियमित रूप से दिन में चार बार आरती होनी लगी प्रात: कालीन , सेवा की आरती, संध्या कालीन, ओर शयन आरती होनी लगी जो आज तक हो रही है 

निर्माण कार्य :- राजसिंह जी ने चारभुजा नाथ का मंदिर बनाया ओर उसी समय रावला (बड़ी पोल)ओर एक बहुत बढ़िया बावड़ी का निर्माण भी कराया गया बावड़ी को पत्थरों से पक्की बांधी गई और उसका नाम अपनी ठकुराईन के नाम
फूला दे के नाम फूल वाव रखा गया था , एक तालाब भी बनाया था जिसका नाम उनकी दूसरी ठकुराईन राजल दे के नाम पर रखा गया था , ओर एक रोज नियमित रूप से गरीबों को दान देने के लिए चोकी का निर्माण किया गया था जिसे 
धरमादा चोकी कहते है , कीर्ति स्थंब भी बनवाया था जो आज भी मौजूद है उस पर शिलालेख अंकित है 

धरमादा चोकी:- राजसिंह जी बहुत दानी पुरुष थे जब मंदिर की स्थापना की गई थी तब सम्पूर्ण राजपुरोहित समाज को आमंत्रित किया गया था ओर मंदिर स्थापना के बाद धरमादा चोकी राजसिंह जी ने अपने वजन के बराबर सोना व रूपा तोला , उनके बाद उनकी दोनों रानियों ने भी अपने वजन के बराबर सोना व रूपा  तौलकर गरीबों को दान कर दिया, इसी चौकी पर राजसिंह जी रोज गरीबों को दान देते थे इसलिए इस चोकी को धरमादा चौकी कहा जाने लगा आज भी यह चौकी रूपावास में है

जागीर गाँव :- राजसिंह जी के बारे में कहा जाता है कि इनको 
84गाँव  आजीवन यानी जब तक जीवित रहते है तब तक गाँव  उनके रहेंगे बाद में वापस जप्त हो जाएंगे इसीलिए यह गाँव  कहा थे ओर कितने साल राजसिंह जी के पास रहे कोई 
ठोस आधार नहीं मिला लेकिन इनको ओर भी गाँव  दिए गए थे जिनमें से प्रमुख रूपावास जिसे राव मालदेव जी द्वारा सोना निवेश ठिकाणा की मान्यता प्राप्त थी बाकी सभी गाँव  रूपावास ठिकाणे के अधीन थे कुछ गाँव  उनके वंश जो द्वारा बसाए गए थे , मोहराई, पांचवा, बांता , बड़ियालो, खातियो की बासनी आदि मोहराई गाँव  राजसिंह जी के पुत्र महेशदास जी ने संवत 1600 में बसाया था , पांचवा गाँव  में  भी  राजसिंह जी के वंशज रहते है

राजसिंह जी के पूर्वजों ओर वंशजों को एक चाट के माध्यम से 
समझते हैं 

           बिजड़ जी 
          हरपाल जी 
          दामा जी 
         बीजा जी
         चोथ जी 
_______1____________2__________
        राजसिंह जी      नृसिंह जी 
             ! 
_____1_______2___________3__________4___
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वेरीसाल जी, महेश दास जी,  कान सिंह जी  ,रायसल जी
 
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                 वेरीसाल सिह जी 
                       !
 ___1___________2__________3______
जसराज जी  चांद सिंह जी।    रूप सिंह जी   

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             रायसल सिंह जी राजावत 
इनके 5 ठकुराईन ओर 14 पुत्र हुए थे कहा जाता हैं कि आठ 
 पुत्र बाल्यकाल में ही नहीं रहे शेष 6 पुत्रों की ओलाद हुई
ओर रूपावास ओर मोहराई में इनके वंशज आज भी रहते हैं
 
1. हेमराज सिंह जी  
2. सांवल सिंह जी 
3. जय सिंह जी 
 इन तीनों भाईयो की छतरीया रूपावास के नेनकिया तालाब पर आज भी है 
4. उदय सिंह इनकी छतरी सुमेल गिरी में है 
5. अचल दास जी 
6. ठाकुर दास जी 
अचल दास जी ओर ठाकुर दास जी के काका महेश दास जी निसंतान थे लेकिन महेश दास जी
ने मोहराई गाँव  बसाने के लिए अचल दास जी ओर ठाकुर दास जी को गोद लिया और उनको अपने साथ मोहराई ले गए और मोहराई गाँव बसाया था 

आज भी रूपावास में पांच हैंस (भाग) है जिनके नाम इस प्रकार है
1. हेमराज सिंह जी की बड़ी हैंस कहलाती है 
2. सांवल सिंह जी की हैंस 
3. उदय सिंह जी की हैंस 
4. जयसिंह जी की हैंस 
5. वेरीसाल जी की हैंस 
इन सभी हैंसो के दमामी अलग अलग है इसलिए रूपावास
में जब लड़की की शादी होती हैं तो सम्हेला में बारात का स्वागत सभी हैंस के दमामी अपने अपने ढोल बजाते हैं 
5 ढोल बजते हैं जो एक अपने आप में गाँव की विशेषता है
राजसिंह जी के पुत्रों के बारे में अलग से पोस्ट करेंगे 
राजसिंह जी के पुत्रों का भी गौरवशाली इतिहास रहा है इनके 
परिवार कई शूरवीर शहीद हुए ओर उनके पीछे सती भी हुए हैं जिसका विवरण इस लेख में दे देता हूं 

1.राजसिंह जी के पीछे उनकी दोनों रानिया फूलादे ओर राजल दे महासती हुए हैं
जिनकी छतरीया आज भी रूपावास गाँव में  बड़ा तालाब पर
है राजसिंह जी की छतरी है या नहीं इसके बारे में जानकारी प्राप्त नहीं हुई कि वे शहीद हुए थे या नहीं 

2.वेरीसाल सिंह जी राजावत आप भी शहीद हुए , आपकी 
   छतरी हिंगावास गाँव के तालाब पर हिंगावास ओर विरावास
   के बीच इनके तीन रानियां थीं , इनके पीछे तीनों रानियां  
     सती हुई थी जिनकी छतरीया आज भी तालाब के बंधे
    पर स्थित है     
   

3. कान सिंह जी राजावत  आप जोधपुर में शहीद हुए
    आपकी 
     घोड़ी राजकुमार को पसंद आ गई और आपने नहीं दी
    तो साजिश कर आपको धोखे  से मारकर घोड़ी ले ली
   इस घटना के बाद राजसिंह जी ने जोधपुर को त्याग दिया 
    था 

4. महेशदास जी राजावत आपका घोड़ा हंस भी जोधपुर
    दरबार को पसंद आ गया लेकिन आपके नहीं देने के 
   कारण आपका पीछा किया लेकिन आपने घोड़े का ओर 
   अपना सिर धड़ से अलग कर दिया आपकी ठकुरानी सती 
   हुई जिनकी छतरी मोहराई गाँव में है आपकी भी छतरी

   घोड़े हंस का चबूतरा मोहराई गाँव में  आज भी है 

5.  उदय सिंह  आप सुमेल गिरी के युद्ध में 
    प्रताप सिंह जी मूलराजोत के साथ शहीद हुए 
    इनकी छतरी भी बनी हुई है लेकिन अभी देखरेख ओर
    निगरानी में रखना बहुत जरूरी है 

6. हेमराज सिंह जी आपकी छतरी रूपावास में बनी है 

7. सांवल सिंह जी  आपकी छतरी भी रूपावास में बनी हुई हैं

8. जयसिंह जी आपकी छतरी भी रूपावास में बनी हुई हैं
 
 6,7,8, आप तीनों भाइयों की छतरी रूपावास के नेनकिया
  तालाब पर बनी हुई हैं यह तीनों भाई कहा शहीद हुए इनका 
  इतिहास  मालूम नहीं हो सका 

राजसिंह जी के पुत्रों ओर पोत्रो के पास अच्छे नस्ल के 
घोड़े थे जो जोधपुर दरबार के राजकुमारों को बहुत पसंद आते थे इसलिए उन्होंने राजसिंह जी के दो पुत्रों को घोड़ों के
लिए मार डाला 

दोहे:- १. राजसिंह जी आवे हाथी पर , रस्ते रुकिया रात ! 
             रात में आवाज आई, माने ले चालो साथ !! 
       
        २. खुद रे बराबर सोनो तोलियो वा जागा भी है उठे !
           धरमादा चौकी केवे , राजसिंह जेडा दानवीर कठे !! 


लेखक :- महेंद्र सिंह सेवड़ राजपुरोहित
           गांव :- ढण्ढोरा  तह: भोपालगढ़ 
          जिला :जोधपुर हाल: चेन्नई 
          संपर्क : 9840654779

संदर्भ : -  रूपावास  राव जी की बही के अनुसार कवि
            दलपत सिंह जी ने अपने हाथ से लिख कर रखे 
            पन्ने , 
            कवि दलपत सिंह जी ओर गजसा रूपावास  
            का विशेष सहयोग रहा है
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