ब्रह्मलीन विमल मुनिजी का जीवन परिचय

ब्रह्मलीन विमल मुनिजी

विमल मुनिजी का जन्म गाँव पालियावास तहसील जैतारण में वि.सं. 1990 माघ शुक्ला पंचमी के दिन हुआ | पिता श्री बालसिंहजी माता श्रीमती उगमादेवी | आप तीन भाई है | जरगानिया पुरोहित आपका घर में आपका नाम मदनसिंह था |

        आप बालपन से ही एकांत प्रिय थे | आप शिक्षा के क्षेत्र में पीछे थे | केवल घर पर ही कुछ शिक्षा प्राप्त कर सके| आप अठारह वर्ष की अवस्था में ही ऋषिकेश स्वर्गाश्राम पहुँच गये | वहा के धार्मिक व सतसंघ मय वातावरण से आपके चित पर गहरा प्रभाव पड़ा | वही से ब्रह्राचारी से दीक्षा ले ली | आप श्री ब्रह्रालीन स्वामी रामसुखदासजी महाराज के साथ करीब 15 वर्ष तक ब्रह्राचारी के रूप में रहे |

        एक बार संत श्री रामसुखदासजी का चातुर्मास कलकत्ते में था | आप भी उनके साथ विराजमान थे | उस वक्त विश्व-विख्यात महामंडलेश्वर परम पूज्य संत श्री गणेश्वरानंदजी का पर्दापर्ण हुआ | उनके प्रवचनों का प्रभाव आपके मानस पटल पर पड़ा कि जीवन-चर्या ही बदल गई जीवन ही धन्य हो गया | सं. 2026 के कार्तिक शुक्ला अष्टमी को दिल्ली में दीक्षा ग्रहण कर ली | सन्यास स्वीकार कर अपना नाम विमल मुनि हो गया | आप उदासीन मत के विचार पर चल पड़े |

        आपने लगभग दो हजार वर्गगज जमीन पुष्कर धरा पर बहुमूल्य थी तथा पुष्कर से अजमेर मार्ग पर विद्ध्यामन है स्वयं ने क्रय की | वह भूखंड संतश्री जी ने राजपुरोहित पंचायत भवन संस्थान को स्वप्रेरणा से प्रसन्न होकर नि:शुल्क भेट कर दी तथा समाज के प्रति उदारता का परिचय दिया | धन्य है ऐसे संत जिन्होंने अपने समाज को नहीं विसराया | सारा राजपुरोहित समाज आपका कृतज्ञ है | आपको नमन करता है |  

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