बालोतरा का इतिहास(वाल जी सिया के द्वारा बचाया बालोतरा)

बालोतरा का इतिहास,
बालोतरा

करीब 900 वर्ष पूर्व की बात है की गांव कुशीप में वालजी व् भिंडाजी सिया राजपुरोहित निवास करते थे वहां के राजपूत उन्हें तंग और परेशान करने लगे , आतंक से बचने के लिए दोनों भाई वहां पर गोदातरा डालकर(जो आज सिया राजपुरोहित के ओरण के नाम से जाना जाता है )लूनी नदी के उत्तरी तट पट ऊँचे धोरे की भूमि जो की मारवाड़ राज्य के सुप्रसिद आउवा राजपूत के अधीन थी ।वहां पर वालजी सिया ने अपनी छड़ी रोपकर ढाणी बनाई गई । वह पूर्व दिशा की तरफ 3 कोस दुरी पर भिंडाजी सिया ने अपनी ढाणी बनाकर रहवास किया जो आज भिंडाकुआ(गोलिया)के नाम से जाना जाता है ।
वालजी सिया ने यहां पर महाजन(फोगटीया जाती) के परिवार चार मेघवाल बारूपाल जाति के परिवारों को लाकर यहां पर बचाया उसके बाद आवश्यकतानुसार माली कुम्हार नाइ लोहार मोहला मुसलमान सुथार  भील दर्जी आदि परिवारों को लाकर बचाया वाल जी सिया ने अपने प्रयासों से इसे एक छोटे गांव का दर्जा दिया । जिसका नाम वाल जी सिया के नाम पर बाल जी की ढाणी रखा गया था वालजी सिया के नाम पर जिसके बाद में वालतरा व अब बालोतरा के नाम से जाना जाता है ।
वाल जी सिया के बाद इस भूमि पर उनके वंशज काबिज होते रहे व काश्त करते रहे । जिनके द्वारा जहां काश्त की जाती थी उसे की जाती थी उसे खेतलड़ी के जाव के नाम से जाना जाता था । जिसको वर्तमान में खेतेश्वर कॉलोनी के नाम से जाना जाता था । तथा ऊपरी धोरे पर बसी आबादी ओ सियो का वास के नाम से आज भी सम्भोतित करते है । उक्त भूमि सिया राजपुरोहितो के अधीन होने से जोधपुर नरेश और आऊवा नरेश के बीच में इस भूमि बाबत विवाद छिड़ गई ,इस विवाद में नरसिंह जी सिया व् कोरणा के खेमकरन जी करणोत(राजपूत) ने अपना बलिदान दे दिया जिनकी याद में वहां पर दो छतरिया बनाई गई (जिसे आज भी छतरियों का मोर्चा के नाम से जाना जाता है ) उसके बाद से इस भूमि पर से राजपूतो ने अपना हक छोड़ दिया और यह पूरी भूमि सिया राजपुरोहितो के अधीन हो गई ।

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