भगवान ब्रह्माजी की उत्पत्ति




पदमपुराण के अनुसार भगवान विष्णु के नाभी स्थित कमल में भगवान विष्णु का प्रवेश तथा उसी क्षण ब्रह्मा के रूप में पुन: बाहर आते हैं। जो चतुर्मुख होते हैं। कमल की नाभी से पैदा होने के कारण 'कमलयौनी' कहलाते हैं। स्वयं ही पैदा हुए अत स्वयंभूदेव कहलाये। उनके चारमुखों से चार वेदों की रचना मानी जाती है, जो इस प्रकार से है-पूर्वमुख-ऋग्वेदपश्चिम मुखसामवेदउत्तर मुखअथर्ववेद, दक्षिण
मुखयजुर्वेद। * पदमपुराण में भगवान ब्रह्मा का जन्म स्थल तीर्थराज पुष्कर बताया गया है।
* पुष्कर यज्ञ की कथा का वर्णन पदमपुराणब्रह्मपुराण और वैष्णवपुराण में मिलता
है, जिसमें उनकी प्रथम धर्मपत्नी-सावित्री तथा द्वितीय धर्मपली- का नाम गायत्री बताया गया है।
* ब्रह्माजी को देवत्रयी कहा जाता है। अर्थात् ब्रह्मा विष्णु और महेश जो कि सृष्टि सलूक, पालनकर्ता और विनाशक है।
विशेष
1. तो फिर यह चौथा मुख किसका है? अर्थात् यह चौथा मुख आदिब्रह्मा' का है,
जिसने भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा को उत्पन्न किया है।
तात्पर्य ये है कि निराकार आदि ब्रह्मा और विष्णु की नाभी कमल से उत्पन्न ब्रह्मा
साकार दोनों अलग-अलग है। अगर इस बात को गंभीरतापूर्वक समझा जाये तो
वास्तव में ब्रह्मा के दो स्वरूप सामने आते है। एकनिराकार ब्रह्म और दूसरा
साकार ब्रह्म। ब्रह्मा को देवत्रयी माना जाता है। अर्थात् ब्रह्माविष्णु और महेश।
एक सृष्टि का रचनाकार, दूसरा पालनकर्ता और तीसरा संहारक। मगर इन तीनों
को जो उत्पन करने वाली सर्वोच्च शक्ति है, वो है- निराकार आदि ब्रह्मा। जो ।
साकार ब्रह्मा के अदृश्य चतुर्मुख का पर्याय और प्रतीक है।
2. ऋग्वेद की भाष्य भूमिका तथा ऋग्वेद के देवता नामक ग्रंथों से पता चलता है कि
हिन्दू धर्म में 33 करोड़ नहीं 33 कोटि देवता है। कोटि का अर्थ होता है-प्रकार।
अथत 33 प्रकार के देवता है, जो इस प्रकार बताये गए हैं -
12 आदित्य - आदित्य, धाता, मितआर्यमा, शक्रा, वरुण, अंशभागविवास्वान,
पूष, सवितातवास्था और विष्णु।
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राजपुरोहित

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