- सुजां बाईसा सिंघणी
धिन धरा नागौर री म्हारे मरूधर देश.
सूजां जलमी लाडनूं जद हरख्यो परदेश!
सन् अठरासो सेंतीस जद आयो.
हणवन्त सिंग घर जामो पायो!
खेल खिलोणो सूं खेले बाई.
राठौङी पैंतरा गढ़ मे पाई!
निडर बणावे जद महतारी.
सिखे बाईसा घुङसवारी!
बचपन बित्यो होई सयानी.
विवाह री पिता मन ठानी!
अठारह सौ सतावन किनो ब्याव.
रियासत किशनगढ़ बिली गांव!
बिली गांव सूजां परणाई.
बैजनाथ बण दूल्हा आई!
वरराजा संग फेरा खाई.
हणवन्त सिंग जी दी विदाई!
बैठ पालकी सुसराल सिदावे.
सुनी रोई धाङायत मिळे जावे!
बैजनाथ कायरता दिखावे.
धाङायतां सूं लङ नहीं पावे!
सूजां ने जद वे बतळावे.
धन माल सुंपण रो केवे!
सूजां मनमें घणी शरमावे.
होय मरद नहीं मान बचावे!
हाथ बाईसा शमशीर उठावे.
पल में रणचण्डी बण जावे!
मारकाट बाई हद मचावे.
धाङायतां ने मार भगावे!
खाण्डो खङग बिजळ सों चमके.
तेज बाईसा रे मुख पर दमके!
शक्ति री ललकारां गूंजे.
बैजनाथ रा गोडा जद धूजे!
बाईसा मन कियो विचार.
कायर संग कयां पङसी पार!
मन संताप भारी जद लाग्यो.
सूजां तुरन्त पति नें त्याग्यो!
पुरूष वेश बाई धारण करावे.
जन सेवा में जीवण लगावे!
अठरसो सतावन अगरेज आयो.
गोरी सेना धमसाण मचायो!
रया मार दियो रक्त बहाई.
गढ बहादुर जद खबर पहुचाई!
सब रियासत रेवो शरणाई.
नही तो म्हासूं करो लङाई!
ठाकुर मन में चिन्ता छाई.
कयां गोरां सूं पिण्ड छुङाई!
खबर पङी तब सूजां आई.
ठाकुर सा ने ईया समझाई!
म्हे सूजां सिंघणी री जाई.
देसूं गोरां ने मार भगाई!
जद तांई धीवङ सूजां जीवे.
गोरा रियासत बङ नही पावे!
सूजां शक्ति रूप बणावे.
चढ घोङे रणचण्डी बण जावे
रूप बाईसा कियो विकराळ.
बणी गोरां री काळ कराळ!
लम्बछङ ले दूनाळी हाथ.
बोली बम बम भोले नाथ!
दस जोधां ने लिना साथ.
चढीया बाईसा ढळती रात!
गोरा पर बाई किनो आघात.
होवण ना दिनो परभात!
रणचण्डी सिंगणी ज्यूं झपटी.
मारण लागी गोरा कपटी!
सूजां शेरणी करे ललकार.
मचगी गोरा में हा हा कार!
कर कटार शमशीर बाजे.
कदई लम्बछङ दूनाळी गाजे!
गोरी सेना करे चित्कार.
धूजण लागी गोरी सरकार!
काळीं गोरी सेना भागी.
रण में सूजां बिजळी ज्यू लागी!
गोरा गाजर ज्यू कट जावे.
गढ पर छियां पङण नही देवे!
गोरा गफलत मे गोता खाया.
अगरेजी अफसर पछताया!
कर जीत सूजां गढ आई.
बहादुर सिंग मन मे हरषाई!
धिन बेटी तूं सूजां बाई.
सूरजण सिंग कह नाम धराई!
भरे दरबार में मान बडाई.
वेश मर्दाना धारण कराई!
भाट बाईसा री महीमा गाई.
सिरोपाव दे मान बढाई!
सूजां शिश पर पाग बंधाई.
कर तलवार दे करी बङाई!
धिन धरा मरूधर कहाई.
"राजपुरोहितों "घर शक्ति जाई!
" राजपुरोहितों" का मान बढाई.
धिन धरती धिन सूजां बाई!
उन्नीसो दो में हुवा निर्वाण.
"श्यामसिंह" लिख करे बखाण!
गोरां सू बाईसा किनो घमसाण.
भाग्या गोरा जद बचाकर प्राण!
सूजां जलमी लाडनूं जद हरख्यो परदेश!
सन् अठरासो सेंतीस जद आयो.
हणवन्त सिंग घर जामो पायो!
खेल खिलोणो सूं खेले बाई.
राठौङी पैंतरा गढ़ मे पाई!
निडर बणावे जद महतारी.
सिखे बाईसा घुङसवारी!
बचपन बित्यो होई सयानी.
विवाह री पिता मन ठानी!
अठारह सौ सतावन किनो ब्याव.
रियासत किशनगढ़ बिली गांव!
बिली गांव सूजां परणाई.
बैजनाथ बण दूल्हा आई!
वरराजा संग फेरा खाई.
हणवन्त सिंग जी दी विदाई!
बैठ पालकी सुसराल सिदावे.
सुनी रोई धाङायत मिळे जावे!
बैजनाथ कायरता दिखावे.
धाङायतां सूं लङ नहीं पावे!
सूजां ने जद वे बतळावे.
धन माल सुंपण रो केवे!
सूजां मनमें घणी शरमावे.
होय मरद नहीं मान बचावे!
हाथ बाईसा शमशीर उठावे.
पल में रणचण्डी बण जावे!
मारकाट बाई हद मचावे.
धाङायतां ने मार भगावे!
खाण्डो खङग बिजळ सों चमके.
तेज बाईसा रे मुख पर दमके!
शक्ति री ललकारां गूंजे.
बैजनाथ रा गोडा जद धूजे!
बाईसा मन कियो विचार.
कायर संग कयां पङसी पार!
मन संताप भारी जद लाग्यो.
सूजां तुरन्त पति नें त्याग्यो!
पुरूष वेश बाई धारण करावे.
जन सेवा में जीवण लगावे!
अठरसो सतावन अगरेज आयो.
गोरी सेना धमसाण मचायो!
रया मार दियो रक्त बहाई.
गढ बहादुर जद खबर पहुचाई!
सब रियासत रेवो शरणाई.
नही तो म्हासूं करो लङाई!
ठाकुर मन में चिन्ता छाई.
कयां गोरां सूं पिण्ड छुङाई!
खबर पङी तब सूजां आई.
ठाकुर सा ने ईया समझाई!
म्हे सूजां सिंघणी री जाई.
देसूं गोरां ने मार भगाई!
जद तांई धीवङ सूजां जीवे.
गोरा रियासत बङ नही पावे!
सूजां शक्ति रूप बणावे.
चढ घोङे रणचण्डी बण जावे
रूप बाईसा कियो विकराळ.
बणी गोरां री काळ कराळ!
लम्बछङ ले दूनाळी हाथ.
बोली बम बम भोले नाथ!
दस जोधां ने लिना साथ.
चढीया बाईसा ढळती रात!
गोरा पर बाई किनो आघात.
होवण ना दिनो परभात!
रणचण्डी सिंगणी ज्यूं झपटी.
मारण लागी गोरा कपटी!
सूजां शेरणी करे ललकार.
मचगी गोरा में हा हा कार!
कर कटार शमशीर बाजे.
कदई लम्बछङ दूनाळी गाजे!
गोरी सेना करे चित्कार.
धूजण लागी गोरी सरकार!
काळीं गोरी सेना भागी.
रण में सूजां बिजळी ज्यू लागी!
गोरा गाजर ज्यू कट जावे.
गढ पर छियां पङण नही देवे!
गोरा गफलत मे गोता खाया.
अगरेजी अफसर पछताया!
कर जीत सूजां गढ आई.
बहादुर सिंग मन मे हरषाई!
धिन बेटी तूं सूजां बाई.
सूरजण सिंग कह नाम धराई!
भरे दरबार में मान बडाई.
वेश मर्दाना धारण कराई!
भाट बाईसा री महीमा गाई.
सिरोपाव दे मान बढाई!
सूजां शिश पर पाग बंधाई.
कर तलवार दे करी बङाई!
धिन धरा मरूधर कहाई.
"राजपुरोहितों "घर शक्ति जाई!
" राजपुरोहितों" का मान बढाई.
धिन धरती धिन सूजां बाई!
उन्नीसो दो में हुवा निर्वाण.
"श्यामसिंह" लिख करे बखाण!
गोरां सू बाईसा किनो घमसाण.
भाग्या गोरा जद बचाकर प्राण!