खेतेश्वर ब्रह्मावतार संपूर्ण कथा
भगवान विष्णु के नाभी रसना से प्रकट ब्रह्मा जी भगवान को सृष्टि रचना हेतु आदेश मिला ब्रह्माजी ने एक पुष्प से प्रहार करके राक्षसों का नाश किया तथा जिस स्थान पर वह पुष्प गिरा वहां 3 सुंदर सरोवर बन गए जिसे आज हम पुष्कर के नाम से जानते हैं भगवान ब्रह्माजी ने सभी देवताओं और मुनियों को पुष्कर में आमंत्रित किया । ब्रह्माजी ने यज्ञ शुरु करने से पूर्व अपनी धर्म पत्नी सावित्री को बुलाने के लिए नारद जी को भेजा नारदजी के सावित्री माता को आने का कारन बताया लेकिन सावित्री मां तैयार होने में व्यस्त थी और नारद जी से कहा कि आप जाओ मैं अपनी सहेलियों के साथ आ रही हूं नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से कहा कि सावित्री ने कहा है कि मेरे बिना यह यज्ञ नहीं हो सकता देवताओं ने यज्ञ का शुभ समय देख देवताओं ने एक कन्या को यज्ञ में बिठाने का निर्णय लिया जिसे आज हम गायत्री माता के नाम से जानते हैं परंतु जब सावित्री मां वहां आई और देखा कि उनके स्थान पर कोई और स्त्री बैठी हैं तो अत्यंत क्रोधित हुई और ब्रह्मा जी को कहा कि पृथ्वी लोक पर तुम्हारा मंदिर नहीं बनेगा और जो मंदिर बनाएगा उसकी मृत्यु हो जाएगी और कहा आपका अपना मंदिर बनाने के लिए आपको स्वयं पृथ्वी लोक पर अवतार लेना पड़ेगा इतना कहकर साविती दूर स्थित एक पहाड़ी पर हमेशा के लिए विराजमान हो गई ।
ब्रह्मा जी के वंशज ऋषि
भारद्वाज ,, वशिष्ठ, आत्रैय, विश्वामित्र, धौम्य, पीपलाद, गौतम, उद्धालिक, कश्यप, शांडिल्य, पाराशर, परशुराम, जन्मदाग्नि, कृपाचार्य
इनके वंशज राजपुरोहित चुने गए वयम राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता
श्राप के उद्धार के लिए स्वयं ब्रह्मा ने खेताराम के रूप में उदेश कुल राजपुरोहित परिवार गांव सराणा में पिता शेरसिंह के घर में मां सिंगारी देवी के कोख से जालौर जिले की खेड़ा गांव में 22 अप्रैल 1912 विक्रम संवत 1969 वैशाख शुक्ला पंचमी को हुआ। खेतारामजी शेरसिंह जी की 7वी संतान और सबसे छोटी संतान थी। खेत सिंह जी खेती का काम करते थे और उनके पिता शेर सिंह जी के देहांत होने के बाद उनके बड़े भाई भोम सिंह के साथ अपने पैतृक गांव सराणा आ गए। शुरू से ही खेती के अलावा उनकी सत्संग में भी इच्छा रहती थी। रात में बैलों को चरता छोड़कर खेताराम जी सत्संग के लिए साई जी की बेरी चले जाते थे और सुबह होने पर बैलों के साथ अपने घर लौट आते थे और समय बीतता चला गया खेताराम जी के मन में सांसारिक वृति को देख बढ़ता देख उसके भाई भोम सिंह ने गांव् गोलिया के सिया राजपुरोहित परिवार में खेत सिंह जी की सगाई कर दी परंतु जब खेताराम जी इस बात का पता चला तो उन्होंने उसी समय जाकर उस कन्या को चुनरी ओढ़ाकर धर्मबहन बना दिया। एक बार जब खेताराम जी साई जी की बेरी पर सत्संग कर रहे थे अब वहां पर गणेशानंद जी भी मौजूद थे। खेताराम जी को सत्संग करता देख उनके मन में आश्रर्य हुआ की यह कोई साधारण बालक नहीं है तब उन्होंने खेताराम जी से कहा कि अगर तुम किसी को अपने गुरु बनाना चाहते हो तो सन्यासी को गुरु बनाओ तभी साई जी गुणेशानन्द जी को कहा जब तक आप जैसे महापुरुषों है तब तक कोई दूसरा विकल्प नहीं है इतना सुनकर गणेश आनंद जी ने खेताराम जी को अपना शिष्य बना दिया
खेताराम जी और मेदाजी चौधरी बचपन में
मेदाजी की पत्नि का कहना है कि खेताराम जी व मेरे पति मेदाजी चौधरी बचपन में एक बीन बिहाई पाडी का दूध पिते थे । यह क्रम लगभग 2 वर्ष तक चला लैकिन जब इस बात का पता मेदाजी के पिता को चला तो मेदाजी ने कहा की मूझे तो खेता ने कहा था । जब लोगो को इस बात का पता चला तो पाडी ने दूध देना बंद कर दिया।
चमत्कार
खेतारामजी एकांत में पिपलिया तलाब पर शिव धुणा अर्पित कर लगभग 3 वर्ष तक उस स्थान पर तपस्या की।एक बार खेतारामजी उनके जन्म स्थान खेड़ा गांव में गए और वहां गांव से दूर एक जाल के वृक्ष के नीचे तपस्या करने लगे और सत्संग की खबर पूरे क्षेत्र में फैलने लगी उस क्षेत्र के एक तपस्वी पुरुष रघुनाथ जी को जब भी पता चला के क्षेत्र में एक संत आए हुए हैं तब वह वहां पहुंच गये ।जब दोनों महापुरुषों को गांव वालों ने देखा और उन्होंने गांव वालों को अदृश्य होकर चमत्कार बताया सर्व धर्म प्रसार ऊंच-नीच व जात पात और भेद भाव नहीं रहे उसके लिए गांव सिवाना में एक कुएं के पास बैठकर वर्षों तक तपस्या की और अपनी देखरेख में रामदेव जी का मंदिर बनाया उसके बाद ग्राम मुरली पर भी काफी समय तक तपस्या करता महादेव जी का मंदिर भी बनाया खेताराम जी ने वहां के लोगों को जीव रक्षा के लिए संदेश दिया फिर समदड़ी में उन्होंने एक वृक्ष के नीचे बैठकर 12 वर्ष तक बिना अन्न ग्रहण किए सबसे कि जिससे उनको ब्रम्ह ज्ञान की प्राप्ति हुई समदड़ी वासियों ने खेताराम जी की भक्ति को देखकर रेलवे स्टेशन के पास महादेव जी का मंदिर निर्माण कर खेतेश्वर से उनकी मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई इस मंदिर में खेताराम जी द्वारा स्थापित होना भी है ज्ञान के बाद उनके रहते कई चमत्कार हुए
जब खेताराम जी महाराज द्वारा रेलगाड़ी रोकना
जब खेतारामजी एक दिन रेल गाड़ी में सफर कर रहे थे समदड़ी स्टेशन पर पास टिकट नहीं होने के कारण टीटी ने उनको रेल गाड़ी से नीचे उतार दिया तो खेतारामजी रेल गाड़ी से उतरकर एक वृक्ष के नीचे जहां बैठकर तपस्या करने लग गए लेकिन वहां पर उपस्थित रेलगाड़ी जो कई इंज्जन बदलने के बावजूद भी हिल नहीं रही थी जब किसी महान पुरुष ने कहा कि खेताराम जी महाराज को गाड़ी से नीचे उतार दिया है उनके ही चमत्कार रेल गाड़ी नहीं चल रही है तब सभी रेलवे कर्मचारियो और टीटी खेताराम जी महाराज के चरणों में गिर गए । और खेताराम ने टीटी से कहा कोनसी जगह के टिकट चाहिए आपको जिले जिले का टिकट बता देता हूं और खेताराम जी ने अपनी जोली(बेग) में हाथ डाल कर जिले जिले के टिकट टीटी को बता दिए।तब टीटी ने चरणों में गिर कर अपनी गलती मानी और जीवन भर उनके गुणगान जपने का कहा और निवेदन पर खेताराम जी रेल में बैठ गए और कहा "चल मारी रेल भवानी हालो संतो रे देश" इतना कहते ही जो कई इंज्जन बदले के बावजूद गाड़ी नही चल रही थी वो भी चल पडी।
उसके बाद पाली जिले के पाती गांव के लोगों के निवेदन पर खेताराम जी ने एक पहाड़ी के पास चतुर्मास किया था वह सर्वप्रथम एक प्याऊ और शिव धुन में स्थापित किया महादेव जी और सत्यनारायण जी का मंदिर भी बनाया गया यहां पर वर्तमान में खेताराम जी का भी मंदिर बना हुआ है और उनकी देखरेख में यहां पर मां अंबे का भव्य मंदिर बनाया गया
खेतारामजी बालोतरा से 8 किलोमीटर दूर आसोतरा प्याऊ पर अपना शिव धुणा स्थापित कर राजपुरोहित समाज के बंधुओं को एक मंच प्रदान किया
20 अप्रैल 1961 विक्रम संवत 2018 वैशाख शुक्ला पंचमी को ब्रह्माजी के मंदिर हेतु भूमि पूजन किया और खेताराम जी अपना मुकुंद घोड़ा लेकर गांव गांव ढाणी ढाणी गए और आर्थिक सहायता के लिए केवल राजपुरोहित समाज से ही मंदिर हेतु सहयोग लिया और कहा भाई राम जी इन खेतिया रे तो कहीं नहीं चाहिए थारे थोड़ो चाहिए तो थोड़ो दो घनो चाहिए तो घणो दो पण इन ब्रम्हधाम सू जुड़वाँ रो अधिकार मती छोड़जो।और भूमि पूजन के ठीक 2 साल बाद ही ब्रह्मा जी की नींव 51 फुट खुदाकर ब्रह्मा जी का मंदिर का कार्य शुरू किया ब्रह्मा जी के मंदिर के द्वार पर दो विशाल हाथी के ऊपर कुबेर और इंद्र को विराजमान कर हाथी की सूंड में कमल के फूल लिए हुए सृष्टि रचियता मानो ब्रह्मा जी का आराधना करते हुए दिखाई देते हैं।और संवत 6 मई 1984 विक्रम संवत 2041 वैशाख शुक्ला को ब्रह्माजी के पास माँ सावित्री को विराजमान कर मंदिर की भव्य प्राण प्रतिष्ठा कर 6 मई को खेताराम जी में अन्न जल त्याग और माता सावित्री के श्राप का वर्णन करते हुए प्राण प्रतिष्ठा के दूसरे 7 मई को उपस्थित भक्तो के बीच अपने प्राण त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए ।
जाते जाते दाता ने समाज के लोगोँ को उपदेश दिया कि-
सुनो सभी बंधुओँ थै
हिलमिल रहिजो साथ ,
सभी सीँवरजो राम ने
थोरे सोने री प्रभात ,
हिलमिल रहिजो भायोँ थै
देश विदेशोँ माँय ,
लक्ष्मी आवे थोरे चौगुणी
कमी कोई री नाय ,
याद रखो भगवान ने
सीँवरो सर्जनहार ,
अन्न धन रा भंडार भरुँ
थोरे हैले हाजर तैयार ।
दाता की महिमा अपारम्पार है , हर पूनम को ब्रह्माधाम आसोतरा मेँ लाखोँ नर नारी दर्शन करके अपना जीवन सफल बनाते हैँ , सच्चे मन से याद कर लो तो दाता आपका हर संकट दूर करते हैँ ।
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दाता के समाधिस्त होने के बाद गादीपति श्री तुलसाराम जी महाराज ने चार धाम पर जाकर चौमासे किये ,
चारोँ धामोँ पर और जहाँ भी चौमासा किया बापजी के दर्शन करने के लिये लोगोँ की असंख्य भीङ पङी ,
श्री तुलसाराम जी की ऐसी महिमा देखकर चार धाम के जगद्गुरु भी अचंभित होकर सोचने लगे कि हम अपने धाम पर है तो कोई इक्के दुक्के लोग दर्शन को आ रहे है और इन संत के दर्शन के लिये लोगोँ की भीङ तरस रही है , और चार धाम के जगद्गुरु भी ऐसे महिमाकारी संत की धाम के दर्शन के लिये तैयार हो गये ।
दाता द्वारा बनाई गई ब्रह्मधाम की महिमा अपारम्पार है , मैँ ऐसी धाम को बारम्बार नमस्कार करता हुँ ।
अन्त मेँ कथा के इस पेज पर लेखनकार के बारे मेँ -
अनपढ बाल गँवार हुँ
दाता
चरणे शीश नवाऊँ ,
महिमा दाता आपरी
सुणी ज्युँ लिख बताऊँ ,,
जोधाणा मारवाङ मेँ
गोलियों कईजै गाम ,
दाता सिर पर हाथ राखजो
"दिनेश" म्हारो नाम ।।