वीर श्री जगराम जी राजपुरोहित का स्मारक स्थान
झुझार श्री जगराम जी राजपुरोहित का जन्म संवत् 1775 आषाढ सुदी एकम् गुरुवार को श्री हरनाथ जी देसलसर के यहाँ हुआ। इनकी माताजी का नाम सरस्वती देवी था। बचपन से ही श्री जगराम युद्ध व घुङसवारी मे निपुर्ण थे। इस कारण छोटी सी अवस्था मे ही बीकानेर दरबार मे महाराजा श्री जोरावरसिंह जी के प्रधान सेनापति पद पर नियुक्त हुए।इस वीर ने मात्र 12 वर्ष की युवावस्था में ही ऐसा रण कौशल दिखाया जो इतिहास के पन्नों में अंकित होकर अमिट हो गए ।
होली का दिन था । जोधपुर की फौजे घेरा डाले हुए थी शंभुबाण तोप क्षण-क्षण किले पर भीषण गोलाबारी कर रही थी, कुछ सैनिक होली का आनन्द ले रहे थे । पुरोहित जी ने महाराजा से गुप्त मंत्रणा के पश्चात् अपने कुछ विश्वासी सवारों के साथ शाम को शोर करते हुए एक साथ उन पर टूट पड़े । पहले ही हमले में शंभुबाण तोप पर अधिकार जमा कर उसका मुंह जोधपुर की सेनाओं की ओर कर दिया । इस अप्रत्याशित हमले से जोधपुर की सेनाओं में बड़ी भयानक अव्यवस्था फैल गई । उसी क्षण जोधपुर महाराजा को खबर मिली कि जोधपुर पर जयपुर के महाराजा जयसिंह ने आक्रमण कर दिया अतः जोधपुर की फौज भाग खड़ी हुई और नागौर पहुंच कर राहत की सांस ली । पुरोहित जी ने भी साहस दिखाकर उनसे कुछ साथियों के साथ झूझ रहे थे और खूब भगाया । इस गुप्त छापामार युद्ध में जगराम जी का सारा शरीर चोटो से छलनी हो गया था । एक तीर उनके सीधा नाभि में लगा, पर उन्होने एक झटके से बाहर निकाल फेंक दिया पर ऐसा करने से उनके पेट की आंते बाहर निकल आई फिर भी उस वीर ने कोई परवाह नहीं की। कमर कसकर शत्रु से झूझता रहा और जब तक कि शत्रु सेना के भय से बीकानेर मुक्त न कर दिया । शत्रु सेना को खदेड़ कर जब बीकानेर पर कोई आक्रमणकारी आस-पास न रहा तब महाराजा जोरावर सिंह को जीत का समाचार सुनाने गढ़ में पहुंचे । महाराजा ने पुरोहित जी को गले लगाया और उसी क्षण इस वीर की आत्मा स्वर्ग को प्रयाण कर गई। महाराजा को बहुत दुःख हुआ । उन्होने हुक्म दिया कि इस पुण्यात्मा स्वामिभक्त का स्मारक (छत्री) मेरे महल में ही जहां उनके प्राण निकले है उसी स्थान पर बनाई जाए किन्तु बाद में यह निर्णय हुआ कि यह स्मारक ऐसे स्थान पर बनाया जाए जहां से महाराजा प्रतिदिन अपने महल से ही दर्शन कर सके । इसलिए यह स्मारक नवगृह बुर्ज जूनागढ़ में स्थित है। स्मारक में प्रतिष्ठित शिलालेख के अनुसार हरनाथ सिंह जी पुरोहित के पुत्र जगराम जी का स्वर्गवास सम्वत् 1797 आषाढ़ शुक्ला एकम के दिन हुआ । जगराम जी के वीरगति प्राप्त करने पर गांव रासीसर उनके पुत्र देवकरण जी को दिया गया ।